बहुत मुश्किल है
मुट्ठी में समो लेना रंगों को 
अभी तो घाव ताज़े है 
नुकीले तेज खंजर के 
अभी तो तरबतर विश्वास 
सरहद के लहू से 
चलो हम एकजुट होकर 
मंजर ही बदल दें
नफरत के सलीबों पे
अमन का राग छेड़े
 
चलो पूनम से उजली चांदनी ले 
प्यार के कुछ बीज बो ले 
चलो अब पोछ दें आंसू 
शहीदों के घरों के 
तभी तो मुट्ठियों में भर सकेगा 
परस्पर प्रेम औ अनुराग का रंग
तभी तो सज उठेंगे  
रंग फागुन से मिलन के