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चलो कुछ बुझे-बुझे ही सही / सांवर दइया
Kavita Kosh से
चलो कुछ बुझे-बुझे ही सही।
मन में सपने जगे तो सही।
होंठ तक न हिले जिनके कभी,
हकला कहने लगे तो सही।
बहुत दृढ़ बने दुर्ग उनके,
कुछ-कुछ ढहने लगे तो सही।
बर्फ़ बनकर जम चुके थे जो,
रिस-रिस बहने लगे तो सही।
भूठ के साथ बहुत नंगे थे,
अब कुछ पहने लगे तो सही!