चलो चाँद पे चल के हम घर बनाएँ / राजेंद्र नाथ 'रहबर'
चलो चांद पर च ले हम घर बनाएं
महब्बत के नग़मे वहां गुनगुनाएं
युंहीं ज़िन्दगानी के पल बीत जाएं
हमें तुम रिझाओ तुम्हें हम रिझाएं
अगर चांद की रुत हो सुन्दर सुहानी
तो फिर लौट कर इस तरफ हम न आएं
सलाम अपना भारत को भेजें वहां से
वहां से ही दीदार भारत का पाएं
सुना है कि है चांद बौनों की धरती
उन्हें एक दिन अपना क़द हम दिखाएं
चले आओ तुम चांद की सर-ज़मीं पर
यही अहले-भारत को दें हम सदाएं
है क्या शय उड़न तश्तरी, उन से पूछें
कहां से ये आएं, किधर को ये जाएं
ये धब्बे जो हैं चांद के मुख पे क्या है
है कितना हसीं चांद ये जान पाएं
समुंदर की लहरों से क्या है तअल्लुक
ये क्यों चांद की ओर उठ उठ के जाएं
ये चंदा जो मामा है सारे जगत का
है क्या इस में कुछ मामूपन, जान पाएं
चकोर इस को क्यों रात भर तकता रहता
हैं क्या चांद में ऐसी दिलकश अदाएं।