चलो जुगनुओं की टोली से चलकर हाथ मिलायें।
अँधियारी की छाती फाड़ें जगमग दीप जलायें।।
टेढ़ी-मेढ़ी द्वेष दंभ की गलियाँ झूठ भरी हैं
छोड़ें टेढ़ी राह कदम हम सीधी राह बढ़ायें।।
भोर हुए उगता है सूरज साँझ हुए ढल जाता
ढल जायेगी निशा द्वेष की यह विश्वास जगायें।।
मस्त चाल चलता है हाथी नहीं किसी की सुनता
हम भी सब की चिंता छोड़ें राह नयी अपनायें।।
सरिता की बहती धारा सा समय बहा जाता है
नहीं किसी के लिये रुकेगा हम भी बढ़ते जायें।।
मृत्यु शिकारी छुप कर बैठा अवसर ढूँढ़ रहा है
साथ जा सके सत्कर्मों का वह पाथेय बनायें।।
नये नये शब्दों को ढूँढ़ें भाव नवीन सजा कर
छंद गीत मुक्तक रच डालें नव गीतिका बनायें।।