चलो झील के किनारे चलें / प्रमोद तिवारी
चलो
झील के
किनारे चलें
चाँद को
पुकारें चलें
चाँदनी खिली है
चारों ओर
झील के किनारे होंगे
चाँदनी के फेरे
चाँदनी के फेरे होंगे
आसमान घेरे
आसमान से पूछेंगे
हैं कहाँ अंधेरे
चाँद से कहेंगे
अब तक
थे कहाँ चितेरे
चलो
बोल बतियाने चलें
मौन गुनगुनाने चलें
चाँदनी मचा रही है शोर
याद नहीं मनुहारों का
रूठना-मनाना
रूठने मनाने वाला
गीत गुनगुनाना
रूप को लगा है लगने
आइना पुराना
आंख में छिपा है
फिर भी
ख्वाब का ख़ज़ाना
चलो
रूठने मनाने चलें
लूटने
खजाने चलें
चाँदनी में खेलें चोर-चोर
जिस जगह मिले थे
पहली बार
वह कहाँ है
जिस जगह खिले थे
हरसिंगार
वह कहाँ है
जिस जगह खड़े थे हम
आधार वह कहाँ है
प्यार वह कहाँ है
अभिसार वह कहाँ है
चलो
फिर उसी ठिकाने चलें
पाठ दोहराने चलें
चाँदनी की थामे-थामे डोर