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चलो फिर से बचपन में जाते हैं। / शशांक मिश्रा 'सफ़ीर'

चलो फिर से बचपन में जाते हैं।
कुछ सपने फिर से सजाते हैं।
फिर से वही दुनियाँ बना लें।
तू मंत्री बन जा, हम राजा बन जाते हैं।
फिर से वही बचकानी बातें।
फिर वह लड़ना अपना।
बन जा तू जूनियर जी,
हम शक्तिमान बन जाते हैं।
चलो फिर से बचपन में जाते हैं।