चलो मदारी खेल दिखाओ / मानबहादुर सिंह
चलो मदारी -- खेल दिखाओ
चाहे जैसा -- चाहे जैसी
बन्दर लाओ -- बन्दरी लाओ
उनको ऐसा नाच नचाओ
बजें तालियाँ, बजें तालियाँ
जो जैसे-तैसे उठ धाएँ
उनसे आटा-दाल मँगाओ
बहू-सास का झगड़ा गाओ
चलो मदारी खेल दिखाओ ।
बन्दर नाचे -- बन्दरी नाचे
उनके साथ ज़माना नाचे
वाह... मदारी वाह... !
गाँव लूट लो, नगर लूट लो
डुग-डुग ऐसी डुग्गी बजाओ
बन्दर को वह पाठ पढ़ाओ
पाँव पकड़ के पेट दिखाए -- दाँत दिखाए
बन्दरी बैठ आँख मटकाए -- सभी लुभाए
मतलब बेमतलब कुछ बोलो
भूल भुला सब दर्द बेचारे
हँस-हँस लोट-पोट हो जाएँ --
इन्हें नहीं मतलब इस उससे
इन्हें तमाशा भर मिल जाए
कोई तमाशा लेकर आओ
गली-गली ख़बर फैलाओ
डुग्गी बजाओ...
बन्दर आया, बन्दरी आई
बच्चे-बूढ़े रुक जाएँगे
अफ़सर बाबू झुक जाएँगे
सारा काम ठप्प हो जाए
डुग्गी बजाओ डुग्गी बजाओ
चाहे जैसा -- चाहे जैसी
बन्दर लाओ -- बन्दरी लाओ
सिर पर लकदक कुलही रख दो
तब बन्दर राजा हो जाए
बन्दरी को घघरी पहनाओ
तब देखो रानी बन जाए
डण्डा लेकर हुक़ुम चलाओ
उचक-उचक वो राज चलाएँ
तुम टाटा-बिड़ला बन जाओ
आटा माँगो -- दाल मँगाओ
काम-धाम सब छोड़-छाड़ कर
दौड़े आएँ -- दौड़े आएँ
बजें तालियाँ, उसे बजाओ
गाँव-नगर में लूट मचाओ
ख़ूब नचाओ... ख़ूब नचाओ
वाह मदारी... वा ऽऽह !