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चलो रूप दें फिर धरा का निखार / रंजना वर्मा
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चलो रूप दें फिर धरा का निखार
करें जिंदगी में नया कुछ सुधार
समेटें उड़े सूखते पत्र आज
बने खाद आये चमन में बहार
हरी शाटिका लें पहन शुभ्र खेत
खिले हर कली रूप अपना सँवार
परी नींद की स्वप्न का दे भंडार
चढ़े भोर पर यामिनी का खुमार
रहे नित हृदय में बसा अपना' गाँव
कहे पर न कोई भी ' मूरख गंवार
न कोई हरा वृक्ष दे आ के' काट
यही तो हमारे हैं जीवन अधार
रहें जलभरे नित्य कूएँ तलाब
नदी की न दूषित करे कोई' आज