भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चलो लौट चलें / अदोनिस
Kavita Kosh से
चलो लौट चलें
उन गलियों में जहाँ हम भटका करते थे
जहाँ हमने दुनिया बसते देखा
अपनी साँसों की झीलों में
और वक़्त आया-जाया करता था टूटी हुई खिड़कियों से
हम घूमते थे अपनी बर्बादी के खंडहरों में, अपनी नादानियों के आईने में
बेजान कागज़ के शब्दकोषों में
और कोई निशान नहीं छोड़ते थे हमारे क़दम
चलो फिर से चलें
अपने बेहतर दिनों के बगीचे में
अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल