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चलो सखी चलिए री जहाँ झूलत युगल किशोर / बिन्दु जी

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चलो सखी चलिए री जहाँ झूलत युगल किशोर।
घटा घिर आई बूँदें झरिलाइ शोर करे दादुर चातक॥
कोकिल नाचत मोर झूलत युगल किशोर।
अवध बिहारी, जनक दुलारी, झुमि-झुमि झमकि झुकत॥
झोंकन सों झकझोर, झूलत युगल किशोर।
सखियाँ झुलावें, मंगल गावें, अम्बुनिधि आनन्द को॥
जनु लेत तरंग हिलोर, झूलत युगल किशोर।
प्रभा समसिय, चन्द्र सियपिय, लखिसुख पावत, प्यास बुझावत।
‘बिन्दु’ चकोर झूलत युगल किशोर॥