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चल तुझे लिखें / तुम्हारे लिए / मधुप मोहता
Kavita Kosh से
चल कि बेताब पानियों से परे
उफ़क के पार रवानियों से परे,
जलती-बुझती उदासियों से परे
ख़ुद को तलाशें कि चल तुझे याद करें
चल मुहब्बत को तसवीर से आज़ाद करें,
चल खिलंे, ग़रीब के गुमाँ की तरह
रात बदनाम न हो, चल कोई तरक़ीब करें
दर्द को दिल में फिर आबाद करें,
प्यार का तेरे सिवा नाम नहीं हो सकता
तेरा किरदार भी नाकाम नहीं हो सकता
ग़मा का रिश्ता है गुमनाम नहीं हो सकता
एक आँसू है चल इसे बरबाद करंे,
ख़्वाब बनना मुहब्बत की फ़ितरत तो नहीं
कभी आहट, कभी अक्स, कभी अहसास
तू है हर सिम्त मुझे तेरी जरूरत तो नहीं
चल तुझे लिखें, नज़्मों में ईजाद करंे।