भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चल दिए वो सभी राब्ता तोड़कर / अनिरुद्ध सिन्हा
Kavita Kosh से
चल दिए वो सभी राब्ता तोड़कर
हमने चाहा जिन्हें फासिला तोड़कर
उम्र भर के लिए हम तो सजदे में थे
क्या मिला आपको आइना तोड़कर
इक ज़रा देर को मुस्कुरा दीजिए
हम चले जाएंगे दायरा तोड़कर
हमको सस्ती जो शोहरत दिलाता रहा
रख दिया हमने वो झुनझुना तोड़कर
यूँ कभी आतेजाते रहो तो सही
क्या मिलेगा तुम्हें सिलसिला तोड़कर