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चल परियों के देश / रघुवीर सहाय

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चल परियों के देश
इस दुनिया में क्या रखा है,
लड्डू-पेड़ा और मलाई
यह सब तो हमने चखा है।
हमने तो खाए हैं भाई
रसगुल्ले संदेश!
चल परियों के देश!

भला वहाँ पर क्या क्या होगा?
एक बड़ा-सा आँगन होगा,
छोटी-सी होगी फुलवारी
खेलेंगे हम जब मन होगा।
या सींचेंगे अपनी क्यारी,
पढ़ना-लिखना भी होगा-
सबको कम औ बेश!
चल परियों के देश!

क्या-क्या वहाँ नहीं होवेगा?
मास्साहब की छड़ी न होगी,
जब करते होंगे शैतानी
सिर पर अम्माँ खड़ी न होगी!
करते ही करते मनमानी
दिन होवेगा शेष!
चल परियों के देश!

देखो जी मत भीड़ लगाओ
वरना सबको होगी मुश्किल,
एक-एक कर करके आओ
आओ टुन्नू-मुन्नू, चिलबिल-
चंदर और महेश!
चल परियों के देश!

-साभार: रघुवीर सहाय रचनावली-2, बाल साहित्य, 403