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चल रहे थे नज़र जमाये हम / विकास शर्मा 'राज़'
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चल रहे थे नज़र जमाये हम
मुड़ के देखा तो लड़खड़ाये हम
खोलता ही नहीं कोई हमको
रह न जाएँ बँधे-बंधाये हम
प्यास की दौड़ में रहे अव्वल
छू के दरिया को लौट आये हम
एक ही बार लौ उठी हमसे
एक ही बार जगमगाये हम
जिस्म भर छाँव की तमन्ना में
उम्र भर धूप में नहाये हम