भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चश्मा-ए-दिलबर में ख़ुश अदा पाया / वली दक्कनी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चश्‍म-ए-दिलबर में ख़ुश अदा पाया
आलम-ए-दिल कूँ मुब्तिला पाया

सैर सहरा की तूँ न कर हरगिज़
दिल के सेहरा में गर ख़ुदा पाया

जब न आया था शिक्‍म-ए-मादर में
इब्तिदा सूँ न इंतिहा पाया

इस्‍म-ए-अल्लाह-ओ-मीम अहमद है
हक़ सतीं हक़ कूँ हक़नुमा पाया

बादशाह-ए-नजफ़ वली अल्‍लाह
पीर-ए-कामिल अली रज़ा पाया

उस मा'नी कूँ बुलहवस नादाँ
क्‍यूँकि समझे 'वली' ने क्‍या पाया