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चश्मा-ए-दिलबर में ख़ुश अदा पाया / वली दक्कनी
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चश्म-ए-दिलबर में ख़ुश अदा पाया
आलम-ए-दिल कूँ मुब्तिला पाया
सैर सहरा की तूँ न कर हरगिज़
दिल के सेहरा में गर ख़ुदा पाया
जब न आया था शिक्म-ए-मादर में
इब्तिदा सूँ न इंतिहा पाया
इस्म-ए-अल्लाह-ओ-मीम अहमद है
हक़ सतीं हक़ कूँ हक़नुमा पाया
बादशाह-ए-नजफ़ वली अल्लाह
पीर-ए-कामिल अली रज़ा पाया
उस मा'नी कूँ बुलहवस नादाँ
क्यूँकि समझे 'वली' ने क्या पाया