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चश्मा ललाट पर मत चढाइएगा / ललन चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
वह बच्चा ही है जो
सफेद को सफेद और स्याह को स्याह कहता है
बचकानी हरकत
किसी मूर्ख का गढ़ा हुआ मुहावरा है
उम्र और अनुभव के बढ़ने के साथ-साथ
नज़रें कमजोर हो जाती हैं
कमजोर नजरें बहुत गुनहगार होती हैं
बदल देती हैं नजरिया
जरुरी है कि समय-समय पर
नज़रों की जांच कराई जाएँ
हो सकता है नजदीकी ठीक हो
मगर दूरी दुरुस्त नहीं हो
कहीं सीढ़ियों से मंजिल पहुँचने के बजाय
पहुँच न जाएँ अस्पताल
यह भी तो हो सकता है कि
आप हों वर्णांधता के शिकार
हालांकि मैं नजर का डाक्टर नहीं हूँ
और न ही मांग रहा हूँ कोई नजराना
एक नेक सलाह पर गौर फरमाइएगा
चश्मे को ललाट पर मत लटकाएगा।