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चश्मे-बातिन जो खुली शाने-हक़ीक़त देखी / रतन पंडोरवी

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चश्मे-बातिन जो खुली शाने-हक़ीक़त देखी
एक पर्दे में बहम वहदत-ओ-कसरत देखी

जब कभी दीद की हसरत ने सताया हम को
दिल का आईना उठा कर तिरी सूरत देखी

ये कोई ख़ाब था या रब कि फ़रेबे-उल्फ़त
उन की सूरत में अयाँ ऊनी ही सूरत देखी

हस्ती-ओ-मर्ग के चक्कर में कहां राहते-दिल
रंज में रंज मुसीबत में मुसीबत देखी

हो गया दिल में सवा शौक़ ग़ज़ल गोई का
हज़रते-दिल की 'रतन' ने जो इनायत देखी।