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चश्मे नम में थे सागर डुबोया किये / रंजना वर्मा

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चश्मे नम में थे सागर डुबोया किये
दाग़ दामन का हम रोज़ धोया किये

दर्द तू ने दिया सह गये हम मगर
तेरी हमदर्दियाँ पा के रोया किये

तेरी उल्फ़त भरी थी नज़र चुभ गयी
आंख को आंसुओं से भिगोया किये

उस पहाड़ी नदी की लहर देख कर
बाजुओं में समन्दर समोया किये

हैं बड़े हौसले पर बड़े फ़ासले
पीठ पर अपनी अरमाँ ढोया किये

तुम ने फैलाई थी प्यार से बाँह जब
सिर टिका कर वहीं हम भी सोया किये

उन की आंखों की जादूगरी देखिये
रात दिन उन निगाहों में खोया किये