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चहक उठे मनवा / सुभाष चंद "रसिया"

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ई रंगीन मौसम, ई बारिश के पानी।
चहक उठे मनवा, ना बस में जवानी॥
 
भीगेला तन मन भीगे सारी देहिया,
कारी बदरिया पकड़ले बा बहिया,
झूरूर-झूरूर बहेला पुरुवा सुहानी॥
चहक उठे मनवा ना बस में जवानी।

अगिया लागल बाटे सगरी बदनिया,
विरही बनावेला सावन के पनिया,
जुल्मी पवनवा उड़ावे चुनर धानी॥
चहक उठे मनवा ना बस में जवानी॥
 
झुरमुट से झींगुर सुनवेला गीतिया,
लागलबा मितवा हो तोहसे पीरीतिया,
चली ना ये बदरा, तोहार मनमानी॥
चहक उठे मनवा ना बस में जवानी।

बगिया के सगरी गुलाब खिल गइले,
मधुर मिलन के, सजन ऋतु अइले,
करी ना बहाना रसिया जी बात मानी॥
चहक उठे मनवा ना बस में जवानी॥