चाँदनी उछालता गुलाब / सोम ठाकुर
नज़रों में उग आए है बबूल
चेहरों पर धुएँ के नकाब
मावस छूकर हम ने याद किया
चाँदनी उछालता गुलाब
ठहर गया है लंगड़ा आदमी
बारूदी वृक्ष के तले
लहराई अंगारों कि फसल
प्रेम-पत्र जेब में जले
हाँफने लगा बूढ़ा आसमान
लादे टूटे अणु की धूल
धार-धार खून उगलते चेहरे
दौड़ते सलीबों की ओर
दौड़ते हुई खामोशी फाड़कर
उठा शोक -गीतों का शोर
मृत्युवती सृष्टि ओढ़ने लगी
गर्दीले मौसम की झूल
फिर वसंत -पीढ़ियाँ निगल कर
रेंगने लगा बहरा काल
हँसी -जड़े खिड़की दरवाज़ो पर
मकड़ी ने पूर दिए जाल
करता है तम दिन का आचमन
शांति -मंत्र हो चले फ़िज़ूल
दैत्य -क्षण गुज़र गया बगल से
अंधापन बाँटता हुआ
कोई पैना आरा गिर गया
स्वप्न -देह काटता हुआ
जाने किस घृणावंश में जन्मे
विष -बुझे दिमाग़ों की भूल
होंठो लगे विराम