भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चाँदनी के गीत / पद्मजा शर्मा
Kavita Kosh से
तुम्हें खोज रही हूँ युगों से
मरकर-जीकर कैसे भी
पाना चाहती हूँ तुमको
मिटना चाहती हूँ तुम पर
आग पर जैसे पतंगा
घुलना चाहती हूँ तुम में
जैसे आँख में काजल
समाना चाहती हूँ
जैसे बूंद समंदर में
सपनों की दुनिया से
आना चाहती हूँ बाहर
कल्पनाओं के बादल बरसते तो हैं
पर भिगोते नहीं
रिश्तों में गरमाहट है
पर छूती नहीं मन को
फूल खिलते हैं पर महकते नहीं
रोशनी देता है सूरज
पर काटता नहीं अँधकार
छाया नहीं मिटाती तपन मन की
कल्पनाओं की पुरवाई
नहीं देती जीवन
और मैं जीना चाहती हूँ भरपूर जीवन
रचना चाहती हूँ चाँदनी के गीत
जीवन की हर बाजी हारकर भी
पाना चाहती हूँ तुमको
क्या मिलेगा मुझे तुम्हारा साथ
दोगे मेरे हाथ में अपना हाथ ?