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चाँदनी डीलक्स / शिरीष कुमार मौर्य

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नैनीताल के शांत सजल सूर्योदय में
मशहूर महाशीर मछली का मरना सब देखते हैं
चिंतित होते हैं
करते हुए
सरकारी और गैरसरकारी पर्यावरणीय विमर्श

मगर
एक नाव का मरना कोई नहीं देखता

पर्यटक बसों के-से नाम वाली यह नाव बँधी मिलती है आजकल
तल्लीताल
अरविन्दो मार्ग के मुहाने पर
हिलती-डुलती
जैसे हत्या के बाद पानी में डूबता-उतराता है कोई शव

कुछ समय पहले तक वह तैरती थी शान से
हज़ारों-लाखों गैलन पानी पर
अपने होने की कई-कई लकीरें बनाती हुई
उस पर विराजते थे
अजनबी पर्यटक बेहिसाब
अपने दिए एक-एक पैसे का हिसाब वसूलते

दरअसल
पेड़ से कटते ही मर गई थी
वह लकड़ी
जिससे इसे बनाया एक पुराने कारीगर ने
जिलाया दुबारा
अपनी थकी हुई साँसों की हवा भरकर
तैराया पानी पर

बूढ़े और बच्चों से भरे एक परिवार को दो वक़्त की रोटी दिला
इसने भी अपना हक़ अदा किया

इसे मेरा अहमक़ होना ही मानें
पर मैं देखता हूँ इसे
किसी रचते-खटते इंसान की तरह

दूसरी कई नावें तैरती हैं
अब भी ताल पर
जगहें ख़ाली होते ही भर दी जाती है
तुरन्त

उसे याद करता है तो बस एक उसे बनाने वाला
और अपनी कोठरी के अंधेरे में
मुस्कुराता है चुपचाप

बाहर
सार्वजनिक अहाते में लगभग तैयार पड़ी है इसी नाम की एक नाव
शायद कल ही दिखाई दे जाए
ताल के पानी में
तुरन्त उगे सूरज का अक्स तलाशती !

समझता जाता हूँ
मैं भी
कि जो मर गई वह महज एक नाव थी
नाव का विचार नहीं
और मुस्कुराता हूँ
अपने हिस्से की उत्तरआधुनिक रात के अंधेरे में
ठीक वही मुस्कान

बूढ़े कारीगर वाली !