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चाँदनी में हैं सभी, मैं ही नहीं हूँ / राजेन्द्र वर्मा
Kavita Kosh से
चाँदनी में हैं सभी, मैं ही नहीं हूँ,
तिश्नगी में हैं सभी, मैं ही नहीं हूँ।
दर्द से मेरी पुरानी दोस्ती है,
बेकली में हैं सभी, मैं ही नहीं हूँ।
धर्मध्वज थामे हुए सब चल रहे हैं,
बेबसी में हैं सभी, मैं ही नहीं हूँ।
जिसको देखो, हाथ फैलाये खड़ा है,
मुफ़लिसी में हैं सभी, मैं ही नहीं हूँ।
मैं हूँ उसमें और वह मुझमें समाया,
कमतरी में हैं सभी, मैं ही नहीं हूँ।
कुछ भी कहने की यहाँ अनुमति नहीं है,
ख़ामुशी में हैं सभी, मैं ही नहीं हूँ।
एक लौ मेरे हृदय में जल रही है,
तीरगी में हैं सभी, मैं ही नहीं हूँ।