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चाँदनी से तरबतर / भवानीप्रसाद मिश्र

चांदनी से तरबतर वह रात
वन के वृक्ष
वृक्षों पर सटी बैठी हुई
झंकारवन्ती झिल्लियाँ

सब याद है
फिर न उतना सुख
न इतना दुख मिले
फ़रियाद है