चाँद कहता था
आज शाम :
अपने सारे सन्ताप
घुला दो
मेरी शीतलता में
मेरी छाँव में
सो रहो।
मगर मैंने कहा :
आऊँगा फिर कभी
अभी उद्विग्न है हृदय
आततायी की विजय-दुंदुभि
सुन पड़ती है
और मेरा देश
उसके छल से अभिभूत
हिंसकता पर मुग्ध
किन्तु अपने
भवितव्य से
अनजान है !
और लीजिए अब पढ़िए असद ज़ैदी के अँग्रेज़ी अनुवाद में यही कविता
UNDER THE FULL MOON
Today evening
the moon said:
let your sorrows
dissolve
in my cool shade
sleep
easy.
But I said:
Some other time
Right now the heart is not at rest
I hear the trumpets
of the triumphant marauder
and my country
is sold on his lies
is in thrall of his bestiality
quite unseeing
of what is coming
to it.
Translated from Hindi by Asad Zaidi