भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चाँद के चेहरे पे / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
चाँद के चेहरे पे रात का डिठौना.
देखो जी, देखो जी,देखो, देखो न.
चौदह दिनों तक था आधा अधूरा,
पूनम के घर आया आज भरा-पूरा.
चाँदी की थाली में गोल-गोल सोना.
देखो जी, देखो जी, देखो,देखो न.
आएगी काली-कलूटी अमावस
ले जाएगी फिर चुराकर इसे बस
आँखों से दूर जा बसेगा सलोना.
देखो जी, देखो जी, देखो, देखो न.