भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चाँद के रुख पे घटाओं का पद जब साया / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चाँद के रुख पे घटाओं का पड़ा जब साया
चश्मे नम ने था तभी झील का रुतबा पाया

उस का अहसास तो हर वक्त साथ रहता है
ये बात और है वो मुद्दतों के बाद आया

मेरी मायूसियों का क्या है सबब मत पूछो
हर घड़ी आँख में चेहरा है वही मुसकाया

साथ जब छोड़ दिया नाखुदा ने कश्ती का
क्या बताऊँ कि ये तूफान उसी पल आया

दिल के गोशे में छिपी थी कहीं हसरत कोई
बन के फ़रियाद लबों पर वही अरमाँ आया

गिरने वाले को सहारा दिया है जब बढ़ कर
दिले बेचैन को क़रार तभी है आया

खिल गया जब किसी बच्चे का हँसी से चेहरा
सच कहूँ मुझ को उसी वक्त खुदा याद आया