चाँद पर / विष्णु नागर
मैं अपनी मर्ज़ी से चाँद पर गया
अपनी ही मर्ज़ी से लौट आया
अपनी ही मर्ज़ी से फूलमालाएँ पहनीं 
और फिर पत्रकार बन बैठा 
चाँद पर फ़ुर्सत मिली
तो कान का मैल निकाला
चाँद पर गए 
सबने कहा
और कान का मैल निकालने बैठ गए
छि - छि - छि
 मैं अपनी मर्ज़ी से चाँद पर गया
मर्ज़ी से यहाँ आया
 मर्ज़ी से सारे काम करता हूँ
 मेरी मर्ज़ी चाँद पर
 कान का मैल निकालने की हुई तो निकाला
 मेरी मर्ज़ी हो तो चाँद की मिट्टी के टुकड़े
 लाऊँ न लाऊँ
 मेरी मर्ज़ी हो तो चाँद से पृथ्वी के लिए 
बोलूँ — न बोलूँ  
हिलता - डुलता हूँ तो अपने लिए 
गाऊँ तो सुनो
न गाऊँ तो मक्खी मारो
 सब कहते हैं चाँद पर गया
 तो पृथ्वी के लिए लेता आता कुछ
अरे मैं मर्ज़ी से चाँद पर गया था
नहीं लाया कुछ 
कान का मैल ही निकाला 
कुछ किया तो 
कुछ करता तो हूँ
चाँद पर भी गया तो कुछ किया
पृथ्वी पर ही कितने लोग 
कान का मैल निकलते हैं 
मैंने चाँद पर किया तो बुरा किया क्या !
 
	
	

