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चाँद बेतुका-सा लगता / नईम

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चाँद बेतुका-सा लगता,
टेढ़े-मेढ़े आकाश में।

महानगर से देश,
गली-कूचे आबादी,
जन चींटी-से रेंग रहे
ढोते बर्बादी;

किसी पार्क के हो लेते,
हल्के-फुल्के अवकाश में।
कोठे, तलघर
सौ तालों में बंद बिचारे,
जमाख़ोर मौसम ने छीने
सभी सहारे।

अर्थहीन अनशन जारी है,
धर्म कहाँ उपवास में?

सूरज से ली होड़
किंतु पछताया हारा।
बंदी हुआ पहुँच से पहले
यह हरकारा;

रातों से पहले दिन के था,
सश्रम कारावास में।