रात आधी
साथ बैठे घाट पर हम
चाँद भी तो है नदी में
दूधिया आकाश ऊपर
और फूलों-सी तुम्हारी देह नीचे
गा रहीं तुम गीत रितु का
सुन रहे हम आँख-मींचे
गीत सुनकर
नाचती हैं पत्तियां भी छूम-छमछम
चाँद भी तो है नदी में
कनखियों से राग जो तुमने रचा है
बज रहा है कहीं भीतर
सोचते हम -
और इसके बाद हम भी
क्या करेंगे भला जीकर
एक चाँदी की गुफा में
जगमगाते स्वप्न चमचम
चाँद भी तो है नदी में
दूर उन पगडंडियों पर आहटें हैं
वहीं परियाँ नाचती हैं
उस तरफ जो घना जंगल
वहीं तो रहते कहीं जोगी-जती हैं
बीच धारा में लहरते
चाँदनी के नये परचम
चाँद भी तो है नदी में