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चाँद में ढलने सितारों में निकलने के लिए / शकील आज़मी
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चाँद में ढलने सितारों में निकलने के लिए
मैं तो सूरज हूँ बुझूँगा भी तो जलने के लिए
मंज़िलों तुम ही कुछ आगे की तरफ़ बढ़ जाओ
रास्ता कम है मिरे पाँव को चलने के लिए
ज़िंदगी अपने सवारों को गिराती जब है
एक मौक़ा भी नहीं देती सँभलने के लिए
मैं वो मौसम जो अभी ठीक से छाया भी नहीं
साज़िशें होने लगीं मुझ को बदलने के लिए
वो तिरी याद के शोले हों कि एहसास मिरे
कुछ न कुछ आग ज़रूरी है पिघलने के लिए
ये बहाना तिरे दीदार की ख़्वाहिश का है
हम जो आते हैं इधर रोज़ टहलने के लिए
आँख बेचैन तिरी एक झलक की ख़ातिर
दिल हुआ जाता है बेताब मचलने के लिए