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चाँद से होकर / महेश सन्तोषी
Kavita Kosh से
यों तो चाँद से होकर कोई रास्ता नहीं जाता,
पर प्यार के सभी रास्ते चाँद से होकर जाते हैं!
इसलिए देहों से देहों पर लिखी रांगोलियों को
अपनी-अपनी संचित दैहिक निधियों को
हम उम्र भर चाँदनी उड़ाते हैं!
यों तो चाँद से...
गिनें तो योजनों दूरियाँ हैं चाँद से
और वह बाँहों के घेरों में भी है एक काल्पनिक अनुमान से
सच, इतना करीब है अजनबी कि
इससे निजी नज़दीकियों के नाते हैं!
यों तो चाँद से...
वह एक गोरा ख़्वाब सही, एक कोरा पत्थर ही सही,
सिर्फ जमी बर्फ सही, पीला रेत का एक घर सही,
हम सब यह मानते हैं और यह भी मानते हैं कि
उसके छलावे हमें बहुत लुभाते हैं!
यों तो चाँद से होकर कोई रास्ता नहीं जाता
पर प्यार के सभी रास्ते चाँद से होकर जाते हैं!