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चाँननी के रात पिआ हे बड़ी निरमोहिया / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

चाँदनी रात को देख अल्हड़ और नई-नवेली पत्नी का बचपना जग जाता है और वह खेलने के लिए मचल उठती है। पति इस चाँदनी रात में पत्नी को खेलने जाने देना नहीं चाहता। वह कहता है- ‘अगर तुम जाओगी तो इस बाँस की कमाची को देख लो, जिससे तुम्हारी पिटाई होगी।’ ऐसा करने पर पत्नी मायके जाने की धमकी देती है। पति भी कह देता है- ‘तब तो मैं भी विदेश चला जाऊँगा।’ पत्नी अपने लिए उपहार लाने को कहती है, जिसे पति स्वीकार कर लेता है तथा साथ ही यह भी कह देता है- ‘अपने लिए मैं वहाँ से एक बंगालिन लड़की को लाऊँगा।’ इसे सुनकर पत्नी का सारा अभिमान चूर-चूर हो जाता है। वह कहती है- ‘तुम्हारे उपहार की चीजें कुछ दिनों में बरबाद हो जायेंगी, लेकिन सौत तो जन्म-भर की होगी।’ ऐसी स्थिति में क्या संभव है कि वह खेलने जाय।

चाँननी के रात पिआ हे बड़ी निरमोहिया, खेले देहो पिआ आजु के रतिया।
जहुँ तोहें खेलबे धनि आजु के रतिया, देखि राखो हे धनि बाँस के करचिया<ref>बाँस की पतली टहनी</ref>॥1॥
बाँस के करचिया जौं तोंहे मारबह पिआ, रुसि जाइबे आपनो हे नैहरबा।
जहुँ तोंहें धनि जैबे आपनी नैहरबा, हमु धनि जैबो हे पुरुब बनिजबा॥2॥
जहुँ तोंहें जैबो हे पिआ पुरुब बनिजबा, लेइतो ऐहो पिआ हो हमरो सनदेसबा।
तोहरा ले आनबौ धनि गे सभै रँगल चोलिया, अपना ले धनि गे बँगालिन बेटिया॥3॥
टूटों फाटि जैतै पिया सभय रँगल चोलिया, रही जैतै पिया हे जनम सौतिनिया॥4॥

शब्दार्थ
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