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चांदनी, कविता और भेड़िया / सुरेश विमल

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हंस रहे हैं
मेरी कविताओं के पात्र
मुझ पर...

पेड़ों की फुनगियों पर
नाच रही हैं
चांदनी की कठपुतलियाँ...

आकाश
लिखेगा शायद अभी-अभी
प्रेम कविताएँ...

ऐसे में
एक साबुत क़लम तक नहीं है
मेरे पास
और न बही...

हिनहिना रहा है
पेट के अस्तबल में
भूख का घोड़ा
पनचक्की बन्द है आज...

जी करता है
इस चांदनी में
बीहड़ों की ख़ाक छानूं
खेलूं भेड़िये के संग
लुका-छिपी का खेल
बना लूं उसे अपना दोस्त
और उसकी मदद से
भेड़ों पर कविताएँ लिखूं।

मैं जानता हूँ
कि भेड़िया जब
मेरे साथ होगा
तो भेडें
मुझ पर हंसेगी नहीं
पनचक्की खोल देगा
भेड़ों का मालिक
आधी रात को...

कलम तो होगी
भेड़िये के पास
और बही भी
ज़रूर होगी।