भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चांदनी की चादर / शकुंतला सिरोठिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चांदनी की चादर उढ़ाऊं तुझे मोहना,
सो जा मेरे लालना।
सूरज भी सो गया, पंछी भी सो गए,
डालो की गोदी में फूल सभी सो गए।
तू भी चुप हो जा, झुलाऊं तुझे पालना।
सो जा मेरे लालना।