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चांदनी दिल दुखाती रही रात भर / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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(मख़दूम* की याद में)
"आप की याद आती रही रात भर
चाँदनी दिल दुखाती रही रात भर"
गाह जलती हुई, गाह बुझती हुई
शम-ए-ग़म झिलमिलाती रही रात भर
कोई ख़ुशबू बदलती रही पैरहन
कोई तस्वीर गाती रही रात भर
फिर सबा साया-ए-शाख़-ए-गुल के तले
कोई किस्सा सुनाती रही रात भर
जो न: आया उसे कोई ज़ंजीर-ए-दर
हर सदा पर बुलाती रही रात भर
एक उम्मीद से दिल बहलता रहा
इक तमन्ना सताती रही रात भर
- हैदराबाद के सुप्रसिद्ध जनकवि मख़दूम मुहीउद्दीन (जिन्होंने तेलंगाना आंदोलन मे भाग लिया )को समर्पित ।
गाह= कभी; शम-ए-ग़म= ग़म का दीपक; पैरहन=वस्त्र; साया-ए-शाख-ए-गुल=फूलों भरी डाली की छाया; ज़ंजीर-ए-दर=दरवाज़े की कुंडी; सदा=आवाज़