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चांदनी रात है मुबहम -सा इशारा कर लें / ज़ाहिद अबरोल
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चांदनी रात है मुबहम<ref>अस्पष्ट</ref>-सा इशारा कर लें
उसको पहचान भी दें और किनारा कर लें
ख़्वाहिशों<ref>इच्छाओं</ref> के इसी जंगल में था खोया जिसको
आज उस शख़्स को हम याद दुबारा कर लें
जो बुरे वक़्त में भी साथ चलेंगी अपने
क्यूं न उन नेक दुआओं का सहारा कर लें
जानलेवा<ref>प्राण-घातक</ref>ही सही ज़िहन<ref>मस्तिष्क</ref>का दिल हो जाना
वक़्त से पहले न क्यूं इस का भी चारा कर लें
दिन को जलते हैं जो बारूद की सूरत<ref>समान</ref>“ज़ाहिद”
शब<ref>रात</ref>को इन बुझते घरों का भी नज़ारा कर लें
शब्दार्थ
<references/>