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चांदो सौदागर का पहुंचना चौपाई नगर / बिहुला कथा / अंगिका लोकगाथा

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होरे बरतुही करी रे चांदो आएल आवास रे।
होरे बंगला ऊपर रे चाँदो ठाढ़ भये गेल रे॥
होरे पहिले मारल गे सोनिका काजर खोपही गे।
होरे तबजे मारल गे सोनिका पुरान वोढ़नी गे॥
होरे सुपाट मारिएगे सोनिका देले धकियये गे।
होरे बाला की बरतुही जेकरि आएला आवास रे॥
होरे एहन कहीते कैलरे दैवा सोनिका साहुनी रे।

होरे बोले तो लागल रे दइबा सोनिका साहुनी रे।
होरे कन्या के छइ हे बनिया एक तो विशेष हे॥
होरे ब्राह्मण बनाएल हे साधु बोड़नी सुपटा हे।
होरे बोले तो लागले रे बनियाँ चांदो सौदागर रे॥
होरे ब्राह्मण नहीं छलैबे साहुनी छलै बिषहरी रे।
होरे कुसगुन करीदेल हे साहुनी मैना बिषहरी रे॥
होरे शूक के बरतुही रे भेल शनि के मण्डप रे।
होरे रविके विवाह हे साहुनी रवि के समदन हे॥
होरे सखी दस आवेगे साहुनी जानबे बोलाय रे।
होरे पुत्र का विवाह जो छीक उबटन पीसे रे॥
होरे गीत गे गवाबे गे सोनिका उबटन पीसे रे।
होरे उबटनले बैठली दै सखी दस साहुनी रे॥
होरे चारों दिशि देखैं रे दइबा नाग जे भरल रे।
होरे मैना काजर रे देखौ सरप कर बिष रे॥
होरे मण्डप हो देखी रे दइबा नाग बइठल रे।
होरे काँपे तो लगली सोनिका धरती लोटबै रे॥
होरे हमना बिहायेबे हे साहु बाला लखन्दर रे।
होरे बिषहरि बेर जे कैल को बालाहा बिहाऐइ रे।
होरे तोहरे ऐसन बुधि हे साहुनी हमना मनावली रे॥