चांद तुम्हें देखा है / प्रमोद तिवारी
चाँद तुम्हें देखा है
पहली बार
ऐसा क्यों लगता
मुझको हर बार
कभी कटोरा लगे दूध का
कभी बर्फ का टुकड़ा
कभी रुई के फाहे जैसा
गोरा-गोरा मुखड़ा
तेरी उपमाओं को देखे
ठगा-ठगा संसार
लुका-छिपी का खेल खेलती
जैसे कोई लड़की
आसमान से झांक रही है
खोले घर की खिड़की
उस खिड़की से
तेरे संग-संग
झाँके मेरा यार
बादल के घूँघट से बाहर
जब भी तू निकला है
मैं क्या मेरे साथ
समन्दर तक मीलों उछला है
आसन पर बैठे जोगी को
जोग लगे बेकार
रूप तुम्हारा एक मगर वो
सौ-सौ रंग दिखाये
कोई देख तुझे व्रत खोले
कोई ईद मनाये
घटता बढ़ता रूप तुम्हारा
तय करता त्योहार
अब तू मुझको पूरा-पूरा
नजर नहीं आता है
छज्जे के आगे बिल्डिंग का
टॉवर पड़ जाता है
बच्चे भी मामा कहने को
तुझे नहीं तैयार
मेरी आवारा रातों को
तूने दिया सहारा
तू ना सोया
वरना तो
दुनिया ने किया किनारा
तू भी सो जाता तो
मेरा क्या होता सरकार