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चाक दामन जब हुआ उसको रफू करते रहे / अनिरुद्ध सिन्हा
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चाक दामन जब हुआ उसको रफू करते रहे
ज़िंदगी भर ज़िंदगी की आरज़ू करते रहे
कुछ तसल्ली और खुद की मुस्कुराहट के लिए
दर्द मेरा हर घड़ी तुम सुर्खुरू करते रहे
देखने लायक हमारी थी वहाँ दीवानगी
अपनी आँखें बंद कर हम गुफ़्तगू करते रहे
था नहीं चेहरा किसी का और इसके बावजूद
रात भर हम जाने किसकी जुस्तजू करते रहे
घर गृहस्थी रिश्तेनाते और ये अपनी ग़ज़ल
इनके पीछे उम्र भर दिल को लहू करते रहे