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चादरें बनती हैं / हेमन्त शेष
Kavita Kosh से
चादरें बनती हैं।
इस्तेमाल की जाती हैं।
धोई जाती हैं। फिर इस्तेमाल की जाती हैं।
अन्तत: वे फट जाती हैं।
गृहलक्ष्मी अगर ज़्यादा सुघड़ हो
तो वे तकियों के गिलाफ़ में भी
बदली जा सकती हैं।
पर गिलाफ़ की कहानी का उपसंहार भी
चादर जैसा है।
प्रिय पाठक, दरअसल
मैं सिर्फ़ यही कहना चाहता था--
चीज़ें नश्वर हैं।