भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चादर / महेश कुमार केशरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छूने से आदमी भी
छुआ जाता है
ऐसा दादी को
अक्सर कहते हुए सुना

चाची को जब दूसरा
बच्चा हुआ तो एक
सांँवली-सी औरत,
हमारे घर रोज़ - आती
और ,
वो चाची की ख़ूब
देर तक मालिश किया करती

करीब -दो - दो घंटे
तक
हमलोग देखकर
अचंभित होते कि कोई
औरत होकर इतनी देर
तक कैसे देह की मालिश
कर सकती है ?

उस, औरत के जाने
के बाद दादी , उस चादर
को बहुत देर तक धोतीं
जिस पर लेटकर चाची
तेल लगवातीं ।

और, बिना मैली हुई
चादर को भी बार- बार
धोतीं ।

 मैं उनकी बगल में
खडा़ होकर उनको
ताकता और दादी से
पूछता, दादी आप साफ़
चादर को भी बार- बार ,
रोज
क्यों धोतीं हैं ?

दादी, प्यार से मेरे
सिरपर, हाथ फेरतीं ।
और कहतीं-
बेटा "चमईन" जात है
चादर में छूत लग जाती है !

चादर, धुलने के बाद
एक बार, फिर, से
सफेद और चमकने
लगती

वो, सांँवली औरत
उबटन का काम ख़त्म
करने के बाद
हमारे घर, से ले जाती
बची हुई, बासी, रोटियाँँ -
भात और
सब्जियाँँ ।

सफेद, चादर को धोने
से पहले और धोने
के बाद उसपर मैनें
कभी कोई दाग नहीं देखा !