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चान्दनी की गन्ध से है भर गया आकाश / राजेन्द्र गौतम

चान्दनी की गन्ध से है
भर गया आकाश

अधलिखा जो गीत था
कल मेज़ पर छोड़ा
छन्द उसमें जा सकेगा
अब नया जोड़ा
हो गई इतनी युवा अब
सर्जना की प्यास

मौन के ही जो सगे थे
होंठ वे अब क्यों न हों वाचाल
कुमुदिनी-सा ही खिला होगा
कहीं जब देह का छवि-ताल
आ जुटेगा सिलसिला सम्बोधनों का
चुप्पियों के पास

शब्द तो सब खो गए हैं
रह गई केवल कहानी
पास मेरे आ सटी जब
कल्पना-सी रातरानी
सुन रहे कुछ कान
कुछ बतिया रहे उच्छ्वास