चान्दनी रात में इक बार तुझे देखा है / नक़्श लायलपुरी
चान्दनी रात में, एक बार तुझे देखा है
चान्दनी रात में, एक बार तुझे देखा है
खुद पे इतराते हुए, खुद से शर्माते हुए
चान्दनी रात में, एक बार तुझे देखा है
नीले अम्बर पे कहीं झूले में
सात रंगो के हसीं झूले में
नाज़ो अन्दाज़ से लहराते हुए
नाज़ो अन्दाज़ से लहराते हुए
खुद पे इतराते हुए, खुद से शर्माते हुए
चान्दनी रात में, एक बार तुझे देखा है
जागती थी लेके साहिल पे कही
लेके हाथो में कोई साज़ ए हसीं
एक रंगी ग़ज़ल गाते हुए
एक रंगी ग़ज़ल गाते हुए
फूल बरसाते हुए, प्यार छलकाते हुए
चान्दनी रात में एक बार तुझे देखा है
खुलके बिखरे जो महकते गेसू
घुल गई जैसे हवा में ख़ुशबू
मेरी हर सांस को महकाते हुए
खुद पे इतराते हुए, खुद से शर्माते हुए
चान्दनी रात में, एक बार तुझे देखा है
तूने चहरे पे झुकाया चेहरा
मैंने हाथों से छुपाया चेहरा
लाज से शर्म से घबराते हुए
फूल बरसाते हुए, प्यार छलकाते हुए
चान्दनी रात में एक बार तुझे देखा है
एक बार तुझे देखा है, चान्दनी रात में