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चान्द को झुक-झुक कर देखा है / रवीन्द्र भ्रमर
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चान्द को झुक-झुक कर देखा है ।
साँझ की तलैया के
निर्मल जल दर्पन में
पारे सी बिछलन वाले
चमकीले मन में —
रूप की राशि को परेखा है ।
दिशा बाहु पाशों में
कसकर नभ साँवरे को —
बहुत समझाया है
इस नैना बावरे को —
वह पहचाने मुख की रेखा है ।
चान्द को झुक-झुक कर देखा है ।