चाबुक और देह - सररियल अनुभूति / साहिल परमार
छब छबा छब
छब छबा छब
जल से खेले हाथ।
जल को लगे ?
हाथ को लगे ?
जल को लगे ?
हाथ तो क्या उस जल को लगे ?
जल तो क्या उस हाथ को लगे ?
या तो फिर दोनों को लगे ?
या तो फिर ना कुछ भी लगे
फिर भी होता
लगने का एहसास सटा सट
सट सटा सट
सटटआक सटटआक
सटटआक सटटआक
सट सटा सट चाबुक उठे
देह के ऊपर
चाबुक उठे
उल्टी-पुल्टी तड़फड़ाती
देह के ऊपर चाबुक उठे
काली-काली देह के ऊपर
चाबुक उठे
देह को लगे ?
या तो फिर चाबुक को लगे ?
चाबुक क्या उस देह को लगे ?
देह क्या उस चाबुक को लगे ?
या तो फिर दोनों को लगे ?
या तो फिर ना कुछ लगे पर
फिर भी होता
लगने का एहसास छबा छब
छब छबा छब
छब छबा छब
करता था वो कुण्ड में पहले
सट सटा सट
सट सटा सट
चाबुक ले के
झँझोड़ता था आक को पहले
जिससे कि पकता था चमड़ा
झँझोड़ता था वह आक को पहले
भूल गया था शहर जा कर
छोरा वो चमार का, साला,
‘ सिंह ‘ और ‘कायस्थ’
‘सिंह’ और ‘कायस्थ’
लिखने लगा
शहर जा कर
नाम औरों के रखने लगा
काम औरों के करने लगा
पढ़ने लगा
दूजों को पढ़ाने लगा
बड़े बड़े हॉल को भी वो
तानसेन का तानपूरा लेकर
संगीत से सजाने लगा
तानारीरी तानारीरी
तालियों की वो
गड़गड़ाहट पाने लगा
आसमान में उड़ने लगा
पाब्लो को पचाने लगा
तालियों की वो
गड़गड़ाहट पाने लगा
सीढ़ी ऊपर सीढ़ी रखकर
ऊँचे-ऊपर चढ़ने लगा
पाब्लो को पचाने लगा
क़ानून मंत्री हो कर वो तो
संविधान रचाने लगा
साला, अछूत लिखने लगा
पढ़ने और पढाने लगा
काम औरों के करने लगा
हँसुआ लेकर लड़ने लगा
नाम औरों के रखने लगा
अपनों को वो गढ़ने लगा
हँसुआ ले कर लड़ने लगा
काम औरों के करने लगा
सब को ये अखरने लगा
‘सिंह’ और ‘कायस्थ’
‘सिंह’ और ‘कायस्थ’
शहर जा कर लिखने लगा
चढ़ने लगा गढ़ने लगा
लड़ने और अखरने लगा
लड़ने ठक ठक
ठक ठका ठक
ठक ठका ठक
भीतर होता जाए ठका ठक
दीवारें टकराए ठका ठक
घन हो के टकराए ठका ठक
कच्चड़ कच्चड़ कुचल डालो
राई का दाना
भीतर में टकराए ठका ठक
साँप को कच्चड़ कुचल डालो
घन हो के टकराए ठका ठक
शत्रु को उगते ही काटो
कातर कच कच
भीतर चलती जाए ठका ठक
चढ़ते चढ़ते
नाम बदलते
काट ही डालो
सीधा आड़ा
काट ही डालो
भीतर होता जाए ठका ठक
खच्चाक-खच्चाक चलने लगे
भीतर में तलवार ठका ठक
चाबुक चलाओ ठक ठका ठक
चाबुक चलाओ
ठच्चाक ठच्चाक छब छबा छब
चाबुक चलाओ
लीक बनाओ लीक बनाओ
लीक के ऊपर
देह पड़ी है काली-काली
चाबुक चले सट सटा सट
सटटआक सटटआक
सटटआक सटटआक
सट सटा सट
काले भँवर जल के परे
चाबुक चले
छब छबा छब
छब छबा छब
काली भँवर देह के परे
देह को लगे ?
या तो फिर चाबुक को लगे ?
जल को लगे ?
ठक ठका ठक
हाथ को लगे ?
या तो फिर चाबुक को लगे ?
ठक ठका ठक
छब छबा छब
देह को लगे ?
ठच्चाक ठच्चाक छब छबा छब
कच कच कच कच
कच्चड़ कच्चड़
छब छब सटटाक ठक ठका ठक
चढ़ने गड़ने
लड़ने चढ़ने
जल को लगे ?
छब छबा चाबुक को लगे ?
या तो फिर कुछ भी लगे ना
फिर भी लगे
लगने का एहसास
खचा खच
कच्चड़ कच्चड़
ठक ठक ठक ठक
ठक ठक ठक ........ ?
मूल गुजराती से अनुवाद : स्वयं साहिल परमार