चाय उबलकर बहने लगती है / गौरव पाण्डेय
मेरे पर्स में है
इक बहुत पुरानी तस्वीर
जिसे जीवन के एकांत क्षणों में
एकटक निहारता हूँ
बड़े गर्व से चूँमकर
वापस पर्स में सुरक्षित रख लेता हूँ
मेरी नवागत पत्नी के पास भी है
कुछ ऐसी ही तस्वीर
जिसे वह मायके से मिली साड़ियों की तहों के बीच
छुपा कर रखती है
मैने उसे कभी-कभी
कुछ रंगीन कागजों को पढ़ते हुए भी देखा
शायद उसे भी मिलें होंगे प्रेम-पत्र
जिस प्रकार मैने दिए थे
अन्तर सिर्फ इतना है कि में
उन चीजों को याद कर गर्व से मुस्कुराता हूँ
और वह सुबुकती है
जिस प्रकार मुझे लगता है
मेरे पर्स की तस्वीर के बारे में उसे कुछ नहीं पता
ठीक उसे भी यही लगता होगा कि
मै उस तस्वीर और प्रेम पत्र के बारे जानता
जिसे वह मायके वालों से भी छुपा कर
अपने साथ साथ ले आई है
जीवन के अंतरंग क्षणों में
उसकी देह और आत्मा के उतुंग शिखरों पर
जब फहरा रही होती है मेरी विजय पताका
तब सोचता हूँ उससे पूछूँ
उन बीते पड़ावों के अनुभवों के बारे में
परन्तु यह सोचते ही
इंद्रियों का कसाव सिथिल होने लगता है
एक दिन जब वह
बाथरूम में थी
मैने साड़ी की तहों से
निकाल ली तस्वीर
और पढ़ लिए प्रेम पत्र
लड़का कुछ हद तक मुझसे सुंदर था
पत्र साधारण से थे
जिनमेँ वही अधपकी बातें
और कुछ वायदे
जीने मरने की कसमें
और दूर होने की परिस्थितियाँ
बहुत दिनों तक मै अनमयस्क
क्या करूँ क्या न करूँ सोचता रहा
एक दिन जब वह बेहद उदास बैठी थी
उसे अपने पास बुलाया
पर्स से तस्वीर निकाली उसे दिखाया
और बीते सारे प्रेमानुभवों को बता दिया
मस्तक चूँम कर कहा- 'अब मैं
सिर्फ तुमसे प्यार करता हूँ
लो तस्वीर जो चाहो सो करो
कई दिनों तक वह गुमसुम रही
अपने भीतर सीढ़ियाँ चढ़ती उतरती रही
एक शाम जब मै बेहद उदास था
वह पास आई और पीछे से झुक कर
बिना कुछ कहे चूँम लिया
फिर उस लड़के की तस्वीर और पत्रों को दिखाया
मैने कहा
मैने बहुत पहले ही इन्हे देख लिया था
यह सुनते ही सजल आँखो से
वह मुझे अपलक देखती है
कुछ डरती है
मै चुप रहता हूँ
एक कप चाय के लिए कहता हूँ
वह भारी कदमों से रसोई में चली जाती है
थोड़ी देर में कुछ जलने की गंध आती है
मैं तेज कदमों से रसोई तक आता हूँ
वह पत्रों एवँ तश्वीरोँ को एक-एक कर
चूल्हे में जला रही है
चाय बना रही है
मैं पीछे से उसके कंधों पर हाथ रखता हूँ
वह मुड़कर मुझसे लिपटने लगती है
चाय उबल कर बहने लगती है ...।