चाय पी पी के दूध घी की कर दई महगाई / बुन्देली
- अंगिका लोकगीत
- अवधी लोकगीत
- कन्नौजी लोकगीत
- कश्मीरी लोकगीत
- कोरकू लोकगीत
- कुमाँऊनी लोकगीत
- खड़ी बोली लोकगीत
- गढ़वाली लोकगीत
- गुजराती लोकगीत
- गोंड लोकगीत
- छत्तीसगढ़ी लोकगीत
- निमाड़ी लोकगीत
- पंजाबी लोकगीत
- पँवारी लोकगीत
- बघेली लोकगीत
- बाँगरू लोकगीत
- बांग्ला लोकगीत
- बुन्देली लोकगीत
- बैगा लोकगीत
- ब्रजभाषा लोकगीत
- भदावरी लोकगीत
- भील लोकगीत
- भोजपुरी लोकगीत
- मगही लोकगीत
- मराठी लोकगीत
- माड़िया लोकगीत
- मालवी लोकगीत
- मैथिली लोकगीत
- राजस्थानी लोकगीत
- संथाली लोकगीत
- संस्कृत लोकगीत
- हरियाणवी लोकगीत
- हिन्दी लोकगीत
- हिमाचली लोकगीत
चाय पी पी के दूध घी की कर दई महंगाई।
बड़ी आफत जा आई।
बेंचे दूध घरे न खावें, लड़का वारे बूंद न पावें।
चाहे पाहुन लो आ जावें
देवी देवता लो होम देशी घी के न पाई।। बड़ी...
घर को बेंचे मोल को धरते, रिश्तेदारों से छल करते,
जे नई बदनामी से डरते,
डालडा से काम चले हाल का सुनाई। बड़ी...
घी और दूध के रहते भूखे, जब तो बदन परे हैं सूखे,
भोजन करत रोज के रूखे
स्वाद गोरस बिना भोजन को समझो न भाई। बड़ी...
देशी घी खों हेरत फिरते, चालीस रुपया सेर बताते,
डालडा तो खूब पिलाते,
बेईमानी की खाते हैं खूब जे कमाई। बड़ी...
जब से चलो चाय को पीना, जिनखों मिले न धड़के सीना
आदत वालों का मुश्किल है जीना,
सुबह शाम उनको परवे न रहाई। बड़ी...
अपना बने चाय के आदी, चालू स्पेशल को स्वादी,
कर दई गौरस की बरबादी।
बीच होटल में जहाँ देखो चाय है दिखाई। बड़ी...