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चाय प्रेम से सीझा एक प्रेम गीत / यश मालवीय
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अच्छी चाय कहीं फ़ुर्सत से
चलकर पीते हैं
चीविंगम चुभलाते मुँह का
टेढ़ा-मेढ़ा होना
दो पल हमको भी दे-दो ना
इतने व्यस्त बनो ना
वह लमहे जो साथ जिये हैं
अच्छे बीते हैं
शाम हो गई तलब लगी है
सिर भी लगा पिराने
चोरी-चुपके से बतियाने
आया किसी बहाने
दिन-दिन भर से धरे मेज़ पर
प्याले रीते हैं
बाहर तो आओ क़िताब से
मौसम भी अच्छा है
कुछ अधीर सा गुलदस्ते में
फूलों का गुच्छा है
दिन बीतें, जो बिना तुम्हारे
लगते तीते हैं