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चाय / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
न होटल की,
न मोटल की,
मैं गुमटी वाले की चाय।
यहाँ सामने बेंच पड़ी है,
आजू-बाजू भीड़ खड़ी है,
नमस्कार जी,
सुबह-सुबह के,
मैं, पहले प्याले की चाय।
रिक्शे वाले यहाँ जुड़े हैं,
झल्ली वाले यहाँ जुड़े हैं,
ऊपर की न
यहाँ कमाई,
मैं निचले माले की चाय।
यहाँ न कोई चमक-दमक है
चाय यहाँ की मगर कड़क है
जो उधार दे देता सबको
मैं हूँ उस लाले की चाय।